कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी ने "भारत गणराज्य के माननीय अधिकारियों" को खुला पत्र लिखकर लगाई न्याय की गुहार
उन्नाव बलात्कार मामले में दोषी और पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी डॉ. इशिता सेंगर ने 29 दिसंबर, 2025 को सोशल मीडिया के माध्यम से "भारत गणराज्य के माननीय अधिकारियों" को एक खुला पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है । यह पत्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने के बाद आया है, जिसमें सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया गया था
unnao
2:13 PM, Dec 30, 2025
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उत्तर प्रदेश। उन्नाव बलात्कार मामले में दोषी और पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी डॉ. इशिता सेंगर ने 29 दिसंबर, 2025 को सोशल मीडिया के माध्यम से "भारत गणराज्य के माननीय अधिकारियों" को एक खुला पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है । यह पत्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने के बाद आया है, जिसमें सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया गया था।
भारत गणराज्य के माननीय अधिकारियों को,
मैं यह पत्र एक ऐसी बेटी के रूप में लिख रही हूँ जो थक चुकी है, डरी हुई है, और धीरे-धीरे विश्वास खो रही है, लेकिन फिर भी आशा पर कायम है क्योंकि जाने के लिए और कहीं नहीं बचा है
आठ वर्षों का इंतजार
आठ वर्षों से मेरे परिवार और मैं चुपचाप, धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहे हैं। हमने हमेशा "सही तरीके" से सब कुछ किया, यह मानते हुए कि सत्य अपने आप बोल उठेगा। हमने कानून पर, संविधान पर भरोसा किया। हमने यह विश्वास किया कि इस देश में न्याय शोर, हैशटैग या जनाक्रोश पर निर्भर नहीं करता।
टूटता विश्वास
आज यह भरोसा टूट रहा है। मेरी पहचान मेरे शब्दों से पहले ही एक लेबल बन जाती है—"बीजेपी विधायक की बेटी"। मानो यह मेरी मानवता को मिटा देता हो। मानो सिर्फ इसी कारण मैं निष्पक्षता, सम्मान या बोलने के अधिकार की हकदार न रहूँ। जिन लोगों ने मुझसे कभी मुलाकात नहीं की, कोई दस्तावेज नहीं पढ़ा, कोई अदालती रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया कि मेरी जिंदगी की कोई कीमत नहीं।
सोशल मीडिया की नफरत
सोशल मीडिया पर मुझे असंख्य बार कहा गया कि मुझे बलात्कार किया जाना चाहिए, मार दिया जाना चाहिए या सजा दी जानी चाहिए—सिर्फ इसलिए कि मैं मौजूद हूँ। यह नफरत अमूर्त नहीं, रोज़मर्रा की है। लगातार। जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने लायक भी नहीं, तो यह आपके अंदर कुछ तोड़ देता है।
चुप्पी की कीमत
हमने चुप्पी इसलिए चुनी क्योंकि हम शक्तिशाली थे, बल्कि इसलिए कि हम संस्थाओं पर भरोसा करते थे। हमने प्रदर्शन नहीं किए, टीवी डिबेट में चिल्लाए नहीं, मूर्तियाँ नहीं जलाईं या हैशटैग ट्रेंड नहीं कराए। हम इंतजार करते रहे क्योंकि हमें लगा कि सत्य को तमाशे की ज़रूरत नहीं। लेकिन इस चुप्पी ने हमें हमारी गरिमा छीन ली—टुकड़ों-टुकड़ों में। हमें अपमानित किया गया, मजाक उड़ाया गया, अमानवीय बनाया गया—हर दिन, आठ वर्षों से। वित्तीय, भावनात्मक और शारीरिक रूप से हम थक चुके हैं—ऑफिस से ऑफिस, पत्र लिखते, फोन करते, गिड़गिड़ाते।[
बेगुनाही की कीमत
हम "शक्तिशाली" कहलाते हैं। मैं पूछती हूँ—कैसी शक्ति आठ वर्षों तक एक परिवार को बुलबुला बनाए रखती है? कैसी शक्ति आपकी बदनामी को रोज़ मिट्टी में लथपथ होते देखने देती है, जबकि आप चुप रहते हैं, एक ऐसी व्यवस्था पर भरोसा करते हुए जो आपकी मौजूदगी तक को स्वीकारने को तैयार नहीं? आज जो डरावना है वह अन्याय नहीं, बल्कि डर है। एक जानबूझकर बनाया गया डर। इतना तेज़ कि जज, पत्रकार, संस्थाएँ और आम नागरिक सब दबाव में चुप हो जाते हैं। एक ऐसा डर जो सुनिश्चित करता है कि कोई हमारे साथ न खड़ा हो, कोई न सुने, कोई न कहे—"चलो तथ्यों को देखें।"
न्याय की गुहार
यह पत्र धमकी देने या सहानुभूति पाने के लिए नहीं लिख रही। मैं इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि डर गई हूँ, और अभी भी मानती हूँ कि, कोई न कोई मेरी सुन लेगा। हम एहसान नहीं मांग रहे। हम अपनी पहचान के कारण सुरक्षा नहीं मांग रहे। हम इसलिए न्याय मांग रहे हैं क्योंकि हम इंसान हैं। कृपया कानून को बिना डर के बोलने दें। सबूतों की जाँच बिना दबाव के करवाएँ। सत्य को सत्य मानें, भले ही

