लखनऊ में बढती थाई मांगुर की बिक्री पर मत्स्य विभाग मौन
लखनऊ में चोरी छिपे थाई मांगुर मछली की बिक्री खूब हो रही है।सस्ती और आसानी से उपलब्ध होने वाली इस मछली का काला कारोबार करके मतस्य पालक अपनी आमदनी बढाने में लगे हुए है।लेकिन इसके शौकीनों को शायद यह पता नही है कि,वह जो मछली खा रहे है वह उनको कैंसर दे रही है।
UTTAR PRADESH
11:12 AM, Jun 29, 2025
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कैंसर जैसी बीमारी देने वाली थाई मांगुर मछली पर प्रतिबंध सौ0 GOOGLE
उत्तर प्रदेश।लखनऊ में चोरी छिपे थाई मांगुर मछली की बिक्री खूब हो रही है।सस्ती और आसानी से उपलब्ध होने वाली इस मछली का काला कारोबार करके मतस्य पालक अपनी आमदनी बढाने में लगे हुए है।लेकिन इसके शौकीनों को शायद यह पता नही है कि,वह जो मछली खा रहे है वह उनको कैंसर दे रही है।
चौकिए मत यह हम नही बल्कि नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल ने कहा है। इसके इन अवगुणों की वजह से ही इनको बैन कर दिया गया है।लेकिन फिर भी इसकी अवैध बिक्री लखनऊ शहर और आसपास के ग्रामीण इलाकों मोहनलालगंज, गोसाईगंज,निगोहां, नगराम,सरोजनीनगर, काकोरी, मलिहाबाद, माल,इटौंजा,महोना,अमानीगंज,बाबागंज,करीमनगर,कुम्हरावा,बख्शी का तालाब, अचरामउ,भाखमउ,बेहटा,चिनहट आदि इलाकों में खूब हो रही है।
क्या है थाई मागुर मछली और क्यो भारत में प्रतिबंधित
थाई मागुर हवा में सांस लेने वाली यह मछली है। जो कि अलग अलग क्षेत्रों में अकार में छोटी बडी हो सकती है लेकिन इसकी औसतन लम्बाई 3-5 फीट तक भी होती है। यह सूखी जमीन पर चल सकती है और कीचड़ में भी आराम से जिंदा रह सकती है। इसके उत्पादन में लागत कम और बाज़ार में मांग अधिक होने के कारण यह मछली लोकप्रिय है।
उत्पादन के लिए सड़ां मांस खिलाया जाता है
अब अगर इस पर बात करें कि यह भारत में प्रतिबंधित क्यो है तो इसके पीछे दो प्रमुख कारण बताए जा रहे है। जिसमें एक यह है कि थाई मांगुर मांस भक्ष्क्षी मछली है। जिन तालाबों नदियों में यह पायी जाती है वहां पर अन्य कोई मछलियां नही बचती है। इसका उत्पादन करने वाले इसके चारे के लिए मरें हुए मवेशी,स्लास्टर हाउस का कचरा आदि इनके भोजन के लिए प्रयोग करते है। इसके अलावा इसकी वजह से जल स्रोतों की प्राकृतिक जैव विविधता में असमानता आ जाती है। इसलिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 2000 में इसकी खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है।
बाहर के देशों से भारत लायी गई थाई मांगुर हुई घातक
चन्द्रभानु गुप्त कृषि महाविधालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ सत्येन्द्र सिहं कहते है कि,थाई मागुर मछली कैंसर बढ़ाने में सहायक है। यह भारत में पायी जाने वाली मछलियों की प्रजाति की नही है। इसको बाहर से यहां पर लाया गया था। लेकिन भारत में आने के बाद यह देश के पर्यावरण के लिए घातक साबित हुई। इस मछली में ऐसे तत्व होतेे है जो कैसर अथवा इस तरीके की बीमारियों का कारण बनते है।
मत्स्य विभाग ने पुलिस की मदद से नष्ट करवाए तालाब
शिकायतों के आधार पर मत्स्य विभाग ने लखनऊ के ग्रामीण इलाकों में कई बार अभियान चलाकर चिन्हित किए गए तालाबों को पटवा दिया। उसमें पाली गई थाई मांगुर को भी गढढा खोदकर दबा दिया गया। लेकिन अभी भी चोरी छिपे मछली पालन की आड में इसका उत्पादन किया जा रहा है। अन्य मछलियों के पीछे चोरी छिपे इनका आयात—निर्यात किया जा रहा है।
खरीदने और खाने वालों को सलाह
केवल उत्तर प्रदेश ही नही पूरे देश में थाई मागुर मछली खरीदना,उसको बेचना और खाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। जो मछली प्रजातियां भारत की है उनका प्रयोग स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बेहतर है। यह स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा है इसलिए इसके प्रयोग से बचें।