उत्तर प्रदेश/लखनऊ। जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है? जन्माष्टमी शब्द का अर्थ ही है, कृष्ण के जन्म की याद में मनाया जाने वाला पर्व; भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी का त्योहार अर्थात कृष्ण-जन्माष्टमी। भगवान कृष्ण का सारा बचपन नंद गांव में बिता। कृष्ण ने कंश के अत्याचारों से संसार को मुक्ति कराने के लिए इस धरती पर जन्म लिया था। कृष्ण के जन्म से पूरी गोकुल नगरी में उत्साह की लहर दौड़ गई थी। श्री कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के नाम में भी जाना जाता है। ये दिन भगवान कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यानी की ये दिन भगवान कृष्ण को समर्पित है। एक कथन के अनुसार देवकी के आठवें पुत्र, भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद अगस्त-सितंबर महीने के अंधेरे पखवाड़े के आठ वें दिन हुआ था और इसी दिन को जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है।
धूम.धाम से मनाया जा रहा है जन्माष्टमी का त्यौहार
देश भर मे श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार सोमवार को बड़े ही धूम— धाम से मनाया जा रहा है। घरो से लेकर तमाम मंदिरो पर भक्त सुबह से ही लड्ड गोपाल की पूजा अराधना करने मे लगे है। आज के दिन काई लोग व्रत भी रखते है और भगवान के भजन कीर्तन मे लीन हो जाते है। जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा का विधान है। रात बारह बजे भगवान कृष्ण जन्मदिन मनाया जाता है। विधि विधान से पूजा पाठ करने के बाद लोग अपना व्रत खोलते है और अच्छे .अच्छे पकवानो का बाल गोपाल को भोग लगाते है। फिर उसके बाद उसके बाद वो खाते है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर हमें क्या करना चाहिए?
जन्माष्टमी पर भक्त भगवान कृष्ण के आशीर्वाद के लिए उपवास रखते हैं। आप निर्जला व्रत आधी रात तक कुछ भी नहीं खा सकते या पानी नहीं पी सकते । फलाहार व्रत केवल फल खा सकते हैं और दूध और पानी पी सकते हैं। हालाकि, ज्योतिस के अनुसार इस दिन सुबह से लेकर रात बारह बजे तक भक्तो को निर्जला व्रत रखना चाहिए और फिर बाल गोपाल के जन्म के बाद अपना व्रत खोलना चाहिए। इससे भक्तो को ज्यादा लाभ होता है।