Deshi Ghee News: भादवे का घी क्यों होता है विशेष,अमृत रस को करता है परिवर्तित

Share

Loading

उत्तर प्रदेश/लखनऊ। भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है। जिसे हम घास कहते हैं,वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ हैं। इनमें धामन जो कि,गायों को अति प्रिय होता है,खेतों और मार्गों के किनारे उगा हुआ साफ सुथरा,ताकतवर चारा होता है।
सेवन एक और घास है जो गुच्छों के रूप में होता है। इसी प्रकार गंठिया भी एक ठोस खड़ है। मुरट,भूरट,बेकर,कण्टी,ग्रामणा, मखणी,कूरी,झेर्णीया,सनावड़ी,चिड़की का खेत,हाडे का खेत,लम्प,आदि वनस्पतियां इन दिनों पक कर लहलहाने लगती हैं।
यदि समय पर वर्षा हुई है तो पड़त भूमि पर रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से ये घास ऐसे बढ़ती है मानो कोई विस्फोट हो रहा है।

इन जड़ी बूटियों पर जब दो शुक्ल पक्ष गुजर जाते हैं तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से इनकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है। कम से कम 2 कोस चलकर,घूमते हुए गायें इन्हें चरकर,शाम को आकर बैठ जाती है।

रात भर जुगाली करती गाय

अमृत रस को अपने दुग्ध में परिवर्तित करती हैं। यह दूध भी अत्यंत गुणकारी होता है। इससे बने दही को जब मथा जाता है तो नवनीत निकलता है। 5 से 7 दिनों में जमा मक्खन को गर्म करके,घी बनाया जाता है।

यही ही भादवेकाघी

इसे आप भोजन के साथ—साथ दूध में डालकर भी पी सकते है। शरीर पर भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। नाक में चुपड़ सकते हैं। चेहरे पर मल सकते हैं। बालों में लगा सकते हैं। बुजुर्ग है तो घुटनों और तलुओं पर मालिश कर सकते हैं। इसमें अलग से कुछ भी नहीं मिलाना पड़ता,सारी औषधियों का सर्वोत्तम सत्व तो इसमें आ गया।

इस घी से हवन

देवपूजन और श्राद्ध करने से अखिल पर्यावरण,देवता और पितर तृप्त हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान तो घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है किंतु देसी गाय का घी वसा नही अपितु अमृत के समान है। मरे हुए को जीवित करने के अतिरिक्त,यह सब कुछ कर सकता है। यह वह घी था जिसके कारण युवा छोड़ो बुजुर्ग भी दिन भर कठोर परिश्रम करने के बाद भी बिलकुल नहीं थकते थे। इसमें स्वर्ण की मात्रा इतनी रहती थी,जिससे सर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे।

ग्वाला गद्दी

शुद्ध देसी गाय एवं बद्री पहाड़ी गाय का वैश्विक वैदिक बिलौना पद्धति से तैयार भादवे का घी। घी की गुणवत्ता तब और बढ़ जाती, यदि गाय पैदल चलते हुए स्वयं गौचर में चरती थी,तालाब का पानी पीती,जिसमें प्रचुर विटामिन डी होता है और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो। वही गायें,वही भादवा और वही घास और वही भादवे का घी आज भी उपलब्ध है। आप अपने यहां मंगा सकते है।